तेलुगु सिनेमा के ‘फिश वेंकट’ नहीं रहे, इलाज के लिए नहीं जुट पाए 50 लाख रुपए; अस्पताल में ली आखिरी सांस
तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री से एक और दुखद खबर सामने आई है। अभिनेता फिश वेंकट, जिनका असली नाम वेंकट राज था, अब हमारे बीच नहीं रहे।
53 वर्षीय इस कलाकार की किडनी और लिवर ने काम करना बंद कर दिया था।
जरूरत थी 50 लाख रुपए की, ताकि समय पर किडनी ट्रांसप्लांट किया जा सके, लेकिन आर्थिक तंगी ने जिंदगी की लड़ाई को अधूरा छोड़ दिया।
दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री, जो करोड़ों की फिल्मों के लिए जानी जाती है, वहां एक वरिष्ठ कलाकार की मदद के लिए कोई सामने नहीं आया — यह केवल एक मौत नहीं, बल्कि सिस्टम पर एक सवाल भी है।
🏥 किडनी फेल होने से हुआ निधन, परिवार नहीं जुटा पाया इलाज का खर्च
कुछ दिन पहले ही वेंकट की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
जैसे-जैसे उनकी स्थिति गंभीर होती गई, डॉक्टरों ने परिजनों को किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी। लेकिन यह प्रक्रिया करीब 50 लाख रुपये की थी — एक ऐसा खर्च जिसे वेंकट का परिवार वहन नहीं कर सका।
अंततः शुक्रवार को उन्होंने अस्पताल में अंतिम सांस ली।
💬 बेटी का दर्द – “पापा ने 20 साल इंडस्ट्री को दिए, लेकिन कोई साथ नहीं आया”
अभिनेता की बेटी श्रवंती ने वन इंडिया से बातचीत में अपना दर्द बयां किया।
उन्होंने कहा कि उनके पिता ने दो दशक से भी ज्यादा समय तक साउथ सिनेमा के लिए काम किया, वह भी ज्यादातर बड़े स्टार्स के साथ।
लेकिन जब उनके जीवन की सबसे ज़रूरी लड़ाई लड़ने की बारी आई, तब इंडस्ट्री का कोई साथी उनके साथ नहीं खड़ा हुआ।
“हमने उम्मीद की थी कि इंडस्ट्री में किसी से मदद मिलेगी, लेकिन किसी ने मुड़कर नहीं देखा।”
यह बयान न केवल एक परिवार का दर्द है, बल्कि पूरी सिनेमा इंडस्ट्री के आत्ममंथन की पुकार है।
🎬 कौन थे ‘फिश वेंकट’? जानिए उनके नाम के पीछे की कहानी
फिश वेंकट नाम के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी छिपी है।
साल 2000 में फिल्म ‘सम्माक्का सरक्का’ से अपने करियर की शुरुआत करने वाले वेंकट को तेलंगाना की लोकभाषा में संवाद बोलने की गहरी पकड़ थी।
उनकी बोली और अंदाज़ लोगों को मछुआरों की याद दिलाता था — इसीलिए उन्हें ‘फिशरमैन’ कहा जाने लगा।
यहीं से उनका नाम पड़ा — ‘फिश वेंकट’, और यही नाम उन्हें पहचान दिला गया।
📽️ 20 सालों का अभिनय सफर, लेकिन आखिरी सफर अकेला
फिश वेंकट ने अपने करियर में कई दर्जन फिल्मों में कॉमिक और सपोर्टिंग किरदार निभाए, खासकर टॉप सितारों के साथ।
उनकी मौजूदगी हर फ्रेम में जीवन भर देती थी, लेकिन जब जिंदगी से ही जंग हारने की बारी आई, तो साथ देने वाला कोई नहीं था।
यह घटना हमें याद दिलाती है कि पर्दे के पीछे काम करने वाले इन कलाकारों के लिए कोई सामाजिक या संस्थागत सुरक्षा तंत्र नहीं है — न मेडिकल हेल्प, न फंड, न सपोर्ट।
📌 निष्कर्ष / सारांश
फिश वेंकट अब नहीं रहे, लेकिन उनके साथ जो हुआ — वह केवल एक व्यक्ति की मौत नहीं, बल्कि एक सिस्टम की खामियों का आईना है।
एक अभिनेता जिसने दो दशक तक दर्शकों को हँसाया, उसे आखिरी वक्त में इलाज के लिए मदद नहीं मिली।
अब समय आ गया है कि फिल्म इंडस्ट्री ऐसे कलाकारों के लिए आपातकालीन स्वास्थ्य फंड और मदद की नीति तैयार करे।
वरना हर बार एक कलाकार यूं ही चुपचाप चला जाएगा — और खबर बनकर रह जाएगा।
🗞️ मुख्य हेडलाइंस:
- तेलुगु एक्टर फिश वेंकट का 53 साल की उम्र में निधन, किडनी और लिवर फेल हुए
- इलाज के लिए चाहिए थे 50 लाख, परिवार नहीं जुटा सका राशि
- बेटी ने बताया – इंडस्ट्री से कोई आगे नहीं आया मदद को
- फिल्मों में मछुआरे जैसे रोल और तेलंगाना बोली से मिला ‘फिश’ नाम
- 20 वर्षों के अभिनय करियर के बाद भी आखिरी वक्त में मिले अकेलेपन का दर्द
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