📰 मुख्य बिंदु :
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिना धर्म परिवर्तन के अंतरधार्मिक विवाह को अवैध करार दिया।
- आर्य समाज संस्थाओं द्वारा जारी किए गए फर्जी विवाह प्रमाणपत्रों पर कोर्ट ने जताई चिंता।
- कोर्ट ने प्रदेश के गृह सचिव को इस मामले की डीसीपी स्तर से जांच कराने का आदेश दिया।
- याचिकाकर्ता पर नाबालिग का अपहरण, दुष्कर्म और POCSO एक्ट के तहत केस दर्ज था।
- कोर्ट ने गृह सचिव से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है और अगली सुनवाई 29 अगस्त को होगी।
🧾 पूरा विवरण:
🔹 हाईकोर्ट की सख्ती: आर्य समाज द्वारा फर्जी विवाह प्रमाण पत्रों पर सवाल
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आर्य समाज संस्थाओं की कार्यशैली पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि वे बिना धर्म परिवर्तन के अंतरधार्मिक नाबालिग जोड़ों को विवाह प्रमाण पत्र जारी कर कानून का उल्लंघन कर रहे हैं। यह फैसला न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की एकलपीठ ने याचिकाकर्ता सोनू उर्फ सहनूर की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
🔹 याचिकाकर्ता पर गंभीर आरोप
सोनू के खिलाफ महाराजगंज के निचलौल थाने में एक नाबालिग लड़की के अपहरण, बलात्कार और POCSO एक्ट के तहत केस दर्ज हुआ था। याचिकाकर्ता का दावा है कि उसने पीड़िता से आर्य समाज मंदिर में विवाह कर लिया है और अब दोनों बालिग हैं तथा साथ रह रहे हैं। इसी आधार पर उसने केस की कार्यवाही रद्द करने की मांग की।
🔹 कोर्ट का स्पष्ट रुख
कोर्ट ने साफ किया कि चूंकि दोनों अलग-अलग धर्म से संबंधित हैं और न तो धर्म परिवर्तन हुआ है और न ही विवाह पंजीकृत हुआ है, इसलिए यह शादी अवैध मानी जाएगी। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि आर्य समाज मंदिरों में लगातार ऐसे मामलों की शिकायतें मिल रही हैं जहाँ बिना कानूनी प्रक्रिया के नाबालिगों की शादी कराई जा रही है।
🔹 गृह सचिव को सौंपी जिम्मेदारी
कोर्ट ने प्रदेश के गृह सचिव को आदेश दिया है कि वे इस मामले की जांच डीसीपी रैंक के अधिकारी से कराएं और अगली सुनवाई (29 अगस्त) तक रिपोर्ट कोर्ट में पेश करें। इसके साथ ही एक व्यक्तिगत हलफनामा भी मांगा गया है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस तरह की गतिविधियों पर उचित कार्रवाई हो रही है।
📌 इस फैसले का सामाजिक प्रभाव
यह फैसला भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और बाल अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। आर्य समाज जैसे धार्मिक संगठनों की भूमिका पर उठ रहे सवाल, भारतीय विवाह कानूनों की निगरानी और पालन की गंभीरता को रेखांकित करते हैं।
- भारत में विवाह कानून: विशेष विवाह अधिनियम की संक्षिप्त जानकारी
- धार्मिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकार
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