📰 परिचय (Introduction):
सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना के मामलों में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि पुलिस को ऐसे मामलों में दो महीने तक पति या ससुराल पक्ष को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए। यह आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2022 में दिए गए दिशा-निर्देशों को बरकरार रखते हुए दिया गया है। कोर्ट ने यह फैसला IPS अधिकारी शिवांगी बंसल से जुड़े एक केस की सुनवाई के दौरान दिया।
🧑⚖️ सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दिया यह आदेश?
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और जस्टिस ए जी मसीह शामिल थे, ने एक महिला आईपीएस अधिकारी और उनके पति के बीच तलाक और उत्पीड़न के मामले में यह निर्णय सुनाया।
कोर्ट ने कहा कि जब कोई महिला 498A IPC (दहेज प्रताड़ना कानून) के तहत रिपोर्ट दर्ज कराती है, तो पुलिस तुरंत गिरफ्तारी ना करे। गिरफ्तारी से पहले मामले की गहन जांच होनी चाहिए।
📅 क्या था पूरा मामला?
यह केस 2022 बैच की आईपीएस अधिकारी शिवांगी बंसल (पूर्व में शिवांगी गोयल) और उनके पति से जुड़ा हुआ है। कोर्ट में दी गई जानकारी के मुताबिक:
- शादी के बाद दोनों के बीच मतभेद हो गए।
- शिवांगी ने अपने पति और ससुराल वालों पर दहेज उत्पीड़न और अन्य धाराओं में केस दर्ज कराया।
- इस केस में पति को 109 दिन और उनके पिता को 103 दिन जेल में रहना पड़ा।
- पूरे परिवार को मानसिक और सामाजिक पीड़ा का सामना करना पड़ा।
🙏 कोर्ट ने माफी मांगने को क्यों कहा?
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि महिला अधिकारी को समाचार पत्रों में सार्वजनिक माफी प्रकाशित करनी होगी, क्योंकि उनके लगाए गए आरोपों के चलते पति और उनके परिवार को मानसिक, शारीरिक और सामाजिक नुकसान हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“जो पीड़ा और आघात परिवार ने सहा, उसकी भरपाई किसी भी रूप में नहीं हो सकती।”
🛡️ महिला के खिलाफ नहीं होगा इस्तेमाल
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने एक संवेदनशील और संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए यह भी कहा कि:
- इस माफी को कभी भी आईपीएस अधिकारी शिवांगी बंसल/गोयल के खिलाफ न्यायिक, प्रशासनिक या अन्य किसी फोरम पर उनके करियर या निजी हितों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
- इसका उद्देश्य न्याय देना है, न कि प्रतिशोध।
⚖️ इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिशानिर्देशों पर मुहर
सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों को सही ठहराया और दोहराया कि:
“498A के तहत शिकायत दर्ज होने पर तुरंत गिरफ्तारी की बजाय दो महीने तक विवेचना होनी चाहिए। इस दौरान समझौते की संभावनाओं पर भी विचार किया जाना चाहिए।”
📌 निष्कर्ष (Summary):
यह फैसला न केवल झूठे मुकदमों से निर्दोष लोगों को बचाने की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि महिलाओं की असली शिकायतों को गंभीरता से सुना जाए। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से कानून के दुरुपयोग को रोकने और न्याय की निष्पक्षता को बनाए रखने का संदेश गया है।
🗞️ मुख्य हेडलाइंस:
- सुप्रीम कोर्ट ने 498A मामलों में गिरफ्तारी पर लगाई रोक
- पुलिस को दो महीने तक नहीं करनी होगी गिरफ्तारी
- IPS अधिकारी शिवांगी बंसल से जुड़ा है पूरा मामला
- पति और ससुर को जेल जाने के बाद अब कोर्ट ने माफी की कही बात
- माफी का इस्तेमाल अधिकारी के करियर के खिलाफ नहीं होगा
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